भारत में बहरेपन के बढ़ते मामले चिंताजनक: डॉ. सारिका वर्मा
भारत में बहरेपन के बढ़ते मामले चिंताजनक: डॉ. सारिका वर्मा
भारत में बहरेपन के बढ़ते मामले पर चिंताजनक: डॉ. सारिका वर्मा
नेशनल इनिशिएटिव फॉर सेफ साउंड की आठवीं कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ।
ध्वनि-स्थान के प्रति समय—समय पर लोगों को जागरूक करना आवश्यक है।
वल्र्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के तय मानकों से कई गुना अधिक शोर भारत में होता है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से रविवार सात
जुलाई को राष्ट्रीय इनिशिएटिव फॉर सेफ साउंड को आठवीं कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। कांग्रेस में विपक्ष के नेता अखिलेश यादव ने कहा कि भारत में बढ़ते आतंकवाद के मामलों पर चिंता जतायी जा रही है। साथ ही इस बात की भी आवश्यकता है कि लोगों को ध्वनि प्रदूषण के प्रति जागरूक करना बेहद जरूरी हो चुका है।
इस कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. सारिका वर्मा व सचिव डॉ. प्रशांत भारद्वाज ने किया।
सम्मेलन में आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आरवी अशोकन, ईएनटी एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शंकर मेडिकरी, नीएसएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जॉन पंकर, नीएसएस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. अजय लेखी और डॉ सीन राजा सहित सत्ता से काफी संख्या में आये पक्षपात ने हिस्सा लिया।
मुंबई वॉयस फाउंडेशन के अध्यक्ष और सोनी चैनल की रोकथाम से जुड़े कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका निभाने वाली सुमैरा अब्दुल अली भी कार्यक्रम में मौजूद रहीं। सभी विशेषज्ञों ने ध्वनि प्रदूषण के प्रभावों और रोकथाम के विषय में अपनी—अपनी जानकारियां साझा कीं। आईएमए गुरुग्राम के अध्यक्ष डॉ. अजय शर्मा, सचिव डॉ. इंद्रमोहन रस्तोगी, आई.आई.एम.ए. के वरिष्ठ सदस्य डॉ. एमपी जैन, डा. मुनीश प्रभाकर, डॉ.सुरेश वशिष्ठ, डॉ. एनपीएस वर्मा, डॉ. आईपी नांगिया, डॉ वंदना नरूला, डॉ अजय अरोड़ा, ईएनटी एसोसिएशन के हरियाणा प्रदेश सचिव डॉ. भूषण पटेल, हरियाणा आई.एम.ए. के अध्यक्ष डॉ. अजय महाजन, सचिव डॉ. शरदेंद्र सोनी, पूर्व अध्यक्ष डॉ. पुनीता हसीजा, एडवोकेट देवेश पांडा, विजेश खटाना, अमृता पांडा, केरल राज्य के मुख्य शासन सचिव सेवानिवृत्त विश्वास मेहता आई.ए.एस., मदद फाउंडेशन के सोरभछाबड़ा, लायंस क्लब के लवलीन सतीजा ने इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के साथ-साथ जरूरी बताया। जर्नियाँ।
इस अवसर पर डॉ. यशवंत ओके की पुस्तक “अंडरस्टैंडिंग कैकोफनी” का भी विमोचन किया गया।
ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते प्रभावों के दुष्परिणाम पर सभी पहलुओं ने चिंता व्यक्त की। कहा जाता है कि ध्वनि प्रदूषण और इसकी रोकथाम करने वाले लोगों को जागरूक करना काफी जरूरी हो चुका है। छोटे बच्चों में इसकी प्रति जागरूकता लाना जरूरी है। भारत में तेज हॉर्न बजाने के लिए, हेडफोन के अधिक प्रयोग, समारोहों में तेज आवाज में संगीत बजाने की व्यवस्था पर नियंत्रण होना आज के समय में काफी जरूरी हो चुका है।
व्यवहारिक रूप से लोगों को यह सिखाने की जरूरत है कि जिस प्रकार से विदेशी धरती पर व्यवहार के हॉर्न का प्रयोग किया जाता है, वह भारत में भी व्यवहारिक रूप से लोगों को सिखाने की जरूरत है। मोबाइल फोन और हेडफोन का प्रयोग बच्चों के लिए कम से कम हो ताकि उनकी सुनने की क्षमता प्रभावित न हो। विशेष रूप से वाहन चलाने वालों को तेज आवाज के दुष्परिणामों से अवगत कराना काफी आवश्यक है ताकि समय रहते वे सुनने की क्षमता लेकर चलने वाली कंपनियों से बच सकें।
वल्र्ड हेल्थ संगठन की तरफ से ध्वनि को लेकर निर्धारित मानकों का प्रयोग, जिसमें यह तय किया गया है कि 55 डेसिबल से ज्यादा दिन में और 45 डेसिबल से ज्यादा शोर रात के समय में नहीं होना चाहिए, वह हजारों गुना शोर हमारे शहरों में रहता है। जिसके कारण लोगों के सुनने की क्षमता काफी कम होती जा रही है। जो कि आगे चल कर बहिष्कार के रूप में भी जाना जाता है। जिसे मेडिकल की भाषा में न्यूज इंडस्ट्रीज़ हायरिंग लॉस कहा जाता है।
तेज आवाज की वजह से हमारे शरीर पर किस तरह के दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं, इसके चलते भारत के लोगों में जागरूकता काफी कम है। इसमें सुधार की काफी अधिक आवश्यकता हो सकती है। नेशनल इनिशिएटिव फॉर सेफ साउंड की कन्वीनर डॉ. सारिका वर्मा ने बताया कि इस पूरे सप्ताह ध्वनि प्रदूषण को लेकर जागरूकता से संबंधित कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस अवसर पर राष्ट्रीय सेफ साउंड वीक की गतिविधियां भी शुरू की गईं।